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शोर / नरेश अग्रवाल
Kavita Kosh से
अलग-अलग
होता सबको शोर -
भीड़ का
रोने का
बहते पानी का और
गुस्से का
थक जाता जब
सारा शोर
शांति होती है
सबकी एक जैसी ही ।