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शोर / विष्णु नागर
Kavita Kosh से
मेरे भीतर इतना शोर है
कि मुझे अपना बाहर बोलना
तक अपराध लगता है
जबकि बाहर ऐसी स्थिति है
कि चुप रहे तो गए।