शोषकों के बदन दबाते हैं
कितनी मेहनत से हम कमाते हैं
फसल वादों की जो उगाते हैं
वोट सबसे अधिक वो पाते हैं
दाल-रोटी का आसरा देकर
ऊँगलियों पर हमें नचाते हैं
आपकी फब्तियाँ भी सुनते हैं
आपको पान भी खिलाते हैं
दूसरों के लिए वो क्या बोलें
शब्द को देर तक चबाते हैं