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शोहरत ही मिली है देखो ज़रा रुसवाई में / शहरयार
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शोहरत ही मिली है देखो ज़रा रुसवाई में
हम इतने बड़े माहिर थे जख़्म-नुमाई में
कुछ दूर ही आये होंगे हम ये ध्यान आया
क्यों लम्बे सफ़र पर निकले आब्ला-पाई में
यह रूह, बदन-दीदार गिराना चाहती थी
और जिस्म रहा मसरूफ हवस-पैदाई में
रुकने के मक़ाम जहाँ भी आएं रुक जाओ
यूँ ज़ीना ज़ीना उतरो दिल गहराई में
पानी पे लिखी तहरीरें जल्दी पढ़ डालो
मुमकिन है खलल आ जाये फिर बीनाई में।