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शौक़े-परवाज़ न बिखरे हुये पर में रखना / ‘अना’ क़ासमी
Kavita Kosh से
शौक़े-परवाज़<ref>उडान की रूचि</ref>न बिखरे हुये पर में रखना
ख़्वाब मत टूटे हुए दीदा-ए-तर<ref>भीगी आँखें</ref>में रखना
दिल के सहरा में कहीं, आंख की झीलों में कहीं
इस मुसाफ़िर को इसी प्यार नगर में रखना
ज़ख़्म ही ज़ख़्म से खुलता नहीं ऐजाजे़ सुखन<ref>काव्य कला</ref>
कुछ हसीनाने-शहर को भी नज़र में रखना
पेट की आग बुझाना भी ज़रूरी है ‘अना’
बस किताबें न फ़क़त ज़ादे-सफ़र<ref>यात्रा–सामग्री</ref>में रखना
शब्दार्थ
<references/>