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श्यामसुन्दर के चरण में सिर झुकाते रह गये / रंजना वर्मा
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श्याम सुन्दर के चरण में सिर झुकाते रह गये
वो नहीं आया मगर उस को बुलाते रह गये
घोर वृंदावन नहीं हम को डरा पाया कभी
याद कर तुझ को नये सपने सजाते रह गये
कौन है सुनता किसी की करुण कष्टों की कथा
व्यर्थ अपनी हम उन्हें गाथा सुनाते रह गये
जो बहादुर हैं समय को जीत कर पाते विजय
और कायर दीप आशा के जलाते रह गये
छीन दुश्मन ले गये हम से हमारी जिंदगी
कुछ न कर पाये विवश आँसू बहाते रह गये
आ गया पतझार ले बर्बादियों को साथ में
सब झरे बस कैक्टस ही मुस्कुराते रह गये
माँगते जो भीख उन की रुचि न कोई पूछता
दान था देना जिन्हें गंगा बहाते रह गये