श्याम प्रेम तब जानिये, जब न रहे दुख-लेश।
अघ-अशान्ति-ज्वाला-सभी हों समूल निःशेष॥
कभी न तनिक हिला सके भीषण झंझावात।
टूटें दुःख-पहाड़, पर लगे न उर आघात॥
भोग-राग का, काम का रहे न नाम-निशान।
राग-काम के हों विषय एकमात्र भगवान॥
जग-ममता का नाश हो, हरि में जगे ममत्व।
द्वन्द्वात्मक इस जगत में हो सर्वत्र समत्व॥
जग के मिलन-बिछोह सब, मान और अपमान।
लाभ-हानि, जीवन-मरण हों सब एक समान॥
विषय-जगत् में हो मरण, प्रभुमें जीवन नित्य।
मिथ्या साा असत की मिटे, प्रकट हो सत्य॥
रहें निरन्तर नित्य हरि बसे हृदय शुचि धाम।
पलभर हों न विलग कभी, मिले रहें अबिराम॥
निरख-निरख निरुपम नवल नख-सिख नन्दकुमार।
आनन्दाबुधि में उठें नव-नव ऊर्मि अपार॥