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श्रद्धा सुमनों की मालाएँ, अर्पित नित करते हैं / रंजना वर्मा

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श्रद्धा सुमनों की मालाएँ, अर्पित नित करते हैं।
स्वप्नों में वह नित्य रहें जो, यादों में बसते हैं॥

सहमी सहमी आँखे नित उस, ओर निहारा करतीं
छीन ले गये सुख मन का वे, लोग जिधर रहते हैं॥

है उदास हर फूल चमन का, रोयी-रोयी कलियाँ
गुन गुन करना भँवरे भूले, काँटों से डरते हैं॥

खोल डायरी जब अतीत की, पलट रहे हों पन्ने
नयन सीप से एहसासों के, क्यों मोती झरते हैं॥

यादें लिपट-लिपट तकिये से, भरती हैं सिसकारी
चादर की सिलवट पर कितने, पल नाचा करते हैं॥

इंद्रधनुष विस्तृत वितान है, धरती से अम्बर तक
चन्द्रकिरण बन आत्मपुंज सब, नभ उड़ान भरते हैं॥

बीता समय नहीं फिर आता, है भविष्य अनजाना
लक्ष्य अदेखा राह अजानी, जीवन भर चलते हैं॥