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श्रमजित् / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
घर-घर नया सबेरा लाने वाले हम
दुनिया को रंगीन बनाने वाले हम !
कलियों को मधु-गंध दिलाने वाले हम
कंठों में नव-गान बसाने वाले हम !
पैरों में झनकार भरी हमने-हमने
जीवन में रस-धार भरी हमने-हमने !
आँखों में सुन्दर स्वप्न सजाये हमने
भोर बसन्त-बहार भरी हमने-हमने !
हम जीवन जीने योग्य बनाने में रत
‘श्रम ही है पुरुषार्थ’ हमारा ऐसा मत !