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श्रमजित / महेन्द्र भटनागर

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श्रम करेंगे तो —
हमारे स्वप्न सब साकार होंगे !
सुदृढ़ आधार होंगे !

उन्मुक्त हो,
सम्पन्नता सुख शान्ति के
नव लोक में
जीवन जिएंगे हम,
सभ्यता-संस्कृति वरण कर
ज्ञानमय आलोक में
प्रतिक्षण रहेंगे हम !
हमारी कल्पनाएँ मूर्त होंगी
श्रम करेंगे तो —
सतत ज्वाला उगलते
अग्नि-भूधर क्षार होंगे !
हमारे स्वप्न सब साकार होंगे !
श्रम करेंगे तो —
अभावों की गहनतम रिक्तता
भर जायगी,
हर हीनता को रौंद
श्रम-जल-धार
जीवन पुण्यमय कर जायगी !
श्रम करेंगे हम —
उपस्थित आज आगत के लिए,
भावी अनागत के लिए !
हम
वर्तमान-भविष्य के
अविजित
नियन्ता हो, नियामक हों !
विचक्षण
अभिलषित-जीवन-विधायक हों !