भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
श्रमिक है बड़ा / प्रेमलता त्रिपाठी
Kavita Kosh से
उषा लालिमा से सजा जब विहान।
रथी रश्मि ने नभ सँभाली कमान।
बढ़े कर्म पथ जो लिए मन हुलास,
श्रमिक है बड़ा सत्पथी वह महान।
मिटाना विघन पथ समय की पुकार,
नशा कर्म का हो सही कर निदान।
अलस में पड़ा जो न करता विचार,
विवशता मिटेगी न जीवन रुझान।
तमस ही बढ़े जो मचाते बवाल,
भयाक्रांत जीवन गढ़े क्या विधान।
बहे प्रेम सीकर सहज हो विकास,
विनत भाव लेकर बढ़ें हम समान।