भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्रांत मन का एक कोना / मानोशी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

श्रांत मन का एक कोना शांत मधुवन-छाँव मांगे।

सरल मन की देहरी पर
हुये पाहुन सजल सपने,
प्रीति सुंदर रूप धरती,
दोस्त-दुश्मन सभी अपने,

भ्रमित है मन, झूठ-जग में सहज पथ के गाँव माँगे।

कई मौसम, रंग देखे
घटा, सावन, धूप, छाया,
कड़ी दुपहर, कृष्ण-रातें,
दुख-घनेरे, भोग, माया।

क्लांत है जीवन-पथिक यह, राह तरुवर-छाँव मांगे।

भोर का यह आस-पंछी
सांझ होते खो न जाये,
किलकता जीवन कहीं फिर
रैन-शैया सो न जाये।

घेर लेती जब निराशा हृदय व्याकुल ठाँव माँगे।