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श्रीमान / भारत यायावर
Kavita Kosh से
श्रीमान, यह ऊबड़-खाबड़ दुनिया
आपकी नहीं है । इससे निकलिए । ऊपर आइये ।
ऊपर धूप है दिसम्बर की । कितनी सुखद !
इस छत के नीचे की ऊबड़-खाबड़ दुनिया
भी कितनी हसीन लगती है, ऊपर से श्रीमान
नीचे के लोगों से ज़्यादा मत बतियाइये
ज़्यादा वक़्त मत जाया कीजिए इन फिजूल लोगों में
वैसे भी आपको तो नेता बनना नहीं है
कालिज में अच्छी तनख्वाह है । एक रुतबा है ।
फिर काहे को श्रीमान, इन बेमालूम और बेकार
लोगों के लिए कुछ भी करें । ज़िन्दगी
चार दिन की है । चांदनी में बिताइये । धूल
फाँकने से क्या होगा ? क्या होगा श्रीमान
आपके इस मानवतावाद से ? क्या होगा ?
श्रीमान सबसे बड़ी चीज़ है कैरियर
उसे बनाइये और मेरी तरह ही
ज़िन्दगी भर मौज उड़ाइये ।