श्रीराधा! कृष्णप्रिया! सकल सुमंगल-मूल।
सतत नित्य देती रहो पावन निज-पद-धूल॥
मिटें जगतके द्वन्द्व सब, हों विनष्टस्न सब शूल।
इह-पर जीवन रहे नित तव सेवा अनुकूल॥
देवि! तुम्हारी कृपासे करें कृपा श्रीश्याम।
दोनोंके पदकमलमें उपजे भक्ति ललाम॥
महाभाव, रसराज तुम दोनों करुणाधाम।
निज जन कर, देते रहो निर्मल रस अविराम॥