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श्री कृष्ण जी की तारीफ़ में / नज़ीर अकबराबादी

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तू सबका खु़दा सब तुझ पे फ़िदा।
अल्लाहो ग़नी<ref>निःस्पृह, बेनियाज</ref> अल्लाहो ग़नी।
हे कृष्ण कन्हैया, नंद लला!
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी।
इसरारे<ref>मर्म-भेद</ref> हक़ीक़त यों खोले।
तोहीद<ref>अद्वैत, ईश्वर को एक मानना</ref> के वह मोती रोले।
सब कहने लगे ऐ सल्ले अला।
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी।

सरसब्ज हुए वीरानए दिल।
इस में हुआ जब तू दाखिल।
गुलज़ार<ref>बाग</ref> खिला सहरा-सहरा<ref>जंगल</ref>।
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी।

फिर तुझसे तजल्ली<ref>आभा, नूर</ref> ज़ार<ref>भरपूर, रक्षक</ref> हुई।
दुनिया कहती तीरो तार हुई।
ऐ जल्वा फ़रोजे<ref>रोशन करने वाले</ref> बज़्मे-हुदा<ref>सत्यता की महफिल</ref>।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी।

मुट्ठी भर चावल के बदले।
दुख दर्द सुदामा के दूर किए।
पल भर में बना क़तरा दरिया।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी।

जब तुझसे मिला ख़ुद को भ्ूला।
हैरान हूं मैं इंसा कि खु़दा।
मैं यह भी हुआ, मैं वह भी हुआ।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी।

खुर्शीद<ref>सूरज</ref> में जल्वा चांद में भी।
हर गुल में तेरे रुख़सार<ref>कपोल</ref> की बू।
घूंघट जो खुला सखियों ने कहा।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी।

दिलदार ग्वालों, बालों का।
और सारे दुनियांदारों का।
सूरत में नबी<ref>ईश-दूत, पैगम्बर</ref> सीरत<ref>स्वभाव, प्रकृति</ref> में खु़दा।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी।

इस हुस्ने अमल<ref>शुभ कार्य</ref> के सालिक<ref>गृहस्थ-साधक</ref> ने।
इस दस्तो जबलए<ref>जंगल और पहाड़</ref> के मालिक ने।
कोहसार<ref>पर्वत</ref> लिया उंगली पे उठा।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी।

मन मोहनी सूरत वाला था।
न गोरा था न काला था।
जिस रंग में चाहा देख लिया।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी।

तालिब<ref>याचक, इच्छुक</ref> है तेरी रहमत का।
बन्दए नाचीज़<ref>तुच्छ सेवक</ref> नज़ीर तेरा।
तू बहरे करम<ref>दया का सागर</ref> है नंद लला।
ऐ सल्ले अला,
अल्लाहो ग़नी, अल्लाहो ग़नी।

शब्दार्थ
<references/>