श्री खरबप्रसाद जी / सत्यप्रकाश बेकरार
श्री खरबप्रसाद जी
धर्मावतार महाज्ञानी,
दाम ऊंचा बोलते हैं
यूं जरा कम तोलते हैं,
दो-चार मंदिरां के निर्माता हैं
कई धार्मिक संस्थाओं के जन्मदाता हैं।
कहते हैं
बैर और क्रोध में क्या रक्खा है,
प्रेम और मेल-मिलाप बहुत अच्छा है।
इसीलिए तो भद्र पुरुष कहते हैं
फूट बुरी चीज है, मिलावट का काम सच्चा है।
चाय में लकड़ी का चूरा
चावलों में श्वेत पत्थर
मिर्च में गेरू
गधे की लीद धनिए में
घी में कुछ चर्बी का चक्कर
जहर में अमृत मिलाते हैं
और अमृत में जहर
ताकि हम सब कह सकें यह सप्रमाण,
शुद्ध तो मूरख मना परमात्मा की जात है!
यूं कठोर हैं
पर मैंने देखा है
जब कोई मजबूर निर्धन बेसहारा
युवा-सुंदर मेनका याचनारत हो
तो पिघल जाते हैं
दे के ही दम लेते हैं
उसे दान!
विधिवत विवाह से वंचित हैं
ब्रह्मचारी
धर्म का मर्म उनकी ही जुबानी है
जो यहां धनवान है, गुणवान है
जो भी समरथ है उसे क्या दोष है,
पाप तो कमजोर पर आरोप है!
किसी मंदिर, किसी गुरुद्वारे में जाकर देख लो
धर्मशाला, गुऊशाला, पाठशाला देख लो
किसी मरघट पे, किसी पनघट पे जाके देख लो
जिसने-जिसने धन दिया है
नाम उसका देख लो,
और अधिक वाले का ऊपर
कम वाले का नीचे देख लो-
अर्थ का यह अर्थमैटिक देख लो,
श्रद्धा का यह बैरोमीटर देख लो।