भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्री चन्द्र जी की आरती / आरती

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अष्टक   ♦   आरतियाँ   ♦   चालीसा   ♦   भजन   ♦   प्रार्थनाएँ   ♦   श्लोक

   
ॐ जय श्रीचन्द्र यती,
स्वामी जय श्रीचन्द्र यती।
अजर अमर अविनाशी योगी योगपती।
सन्तन पथ प्रदर्शक भगतन सुखदाता,
अगम निगम प्रचारक कलिमहि भवत्राता।
कर्ण कुण्डल कर तुम्बा गलसेली साजे,
कंबलिया के साहिब चहुँ दीश के राजे।
अचल अडोल समाधि प्झासा सोहे
बालयती बनवासी देखत जग मोहे।
कटि कौपीन तन भस्मी जटा मुकुट धारी,
धर्म हत जग प्रगटे शंकर त्रिपुरारी।
बाल छबी अति सुन्दर निशदिन मुस्काते,
भ विशाल सुलोचन निजानन्दराते।
उदासीन आचार्य करूणा कर देवा,
प्रेम भगती वर दीजे और सन्तन सेवा।
मायातीत गुसाई तपसी निष्कामी,
पुरुशोत्तम परमात्म तुम हमारे स्वामी।
ऋषि मुनि ब्रह्मा ज्ञानी गुण गावत तेरे,
तुम शरणगत रक्षक तुम ठाकुर मेरे।
जो जन तुमको ध्यावे पावे परमगती,
श्रद्धानन्द को दीजे भगती बिमल मती।
अजर अमर अविनाशी योगी योगपती।
स्वामी जय श्रीचन्द्र यती