भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
श्री बालकृष्ण जी की आरती / आरती
Kavita Kosh से
आरती बालकृष्ण की कीजै।
अपनों जनम सुफल करि लीजै।
श्रीयशुदा को परम दुलारौ।
बाबा की अखियन कौ तारो।।
गोपिन के प्राणन को प्यारौ।
इन पै प्राण निछावरी कीजै।
आरती बालकृष्ण की कीजै।।
बलदाऊ कौ छोटो भैया।
कनुआँ कहि कहि बोलत मैया।
परम मुदित मन लेत वलैया।
यह छबि नयननि में भरि लीजै।
आरती बालकृष्ण की कीजै।।
श्री राधावर सुघर कन्हैया।
ब्रजजन कौ नवनीत खवैया।
देखत ही मन नयन चुरैया।
अपनौ सरबस इनकूं दीजे।
आरती बालकृष्ण की कीजै।।
तोतरि बोलनि मधुर सुहावै।
सखन मधुर खेलत सुख पावै।
सोई सुकृति जो इनकूं ध्यावै।
अब इनकूं अपनों करि लीजै।
आरती बालकृष्ण की कीजै।।