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श्री बेढब बनारसी की हीरक जयन्ती के अवसर पर / गुलाब खंडेलवाल

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काशी के कबीर तुलसी थे, भारतेंदु-से युगावतार
यहीं अवतरित हुए महाकवि रत्नाकर, प्रसाद, हरिऔध ,
प्रेमचंद-से जन-मन दर्शी, पंडित शुक्ल, रसज्ञ उदार,
दीन-दास से हिन्दी-नायक, दिया जिन्होंने भाषाबोध.
 
चन्द्रकान्ता खत्रीजी की, बाबा गिरि की कुण्डलियाँ,
गहमर का जासूस इसी नगरी में था फेरी देता.
गली-गली साहित्यिक गंगा, घर-घर कविता की कलियाँ,
कंकर-कंकर शंकर इसका, मस्ती में गोते लेता.
 
काव्य-कला-साहित्य सभी का किन्तु पूर्ण प्रस्फुटन लिए
काशी की रस-परम्परा के प्रतिनिधि-से तुम शोभित आज
हे सम्राट अटूट हास्य के! व्यंग्य-शरों से रोक दिए
जिसने छल-पाखण्ड लोक के, दिया भारती को नव साज.
 
किसे न भाया यह बेढब साहित्य सत्य, शिव, सुन्दरतम,
हिन्दी-हृदय-हार-हीरक-सा, धवल, पारदर्शी, अनुपम