भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
श्री भैरोंसिंहजी नै पाती / कन्हैया लाल सेठिया
Kavita Kosh से
आप सरीसा लूंठा नेता
म्हांरा देस दिवाण,
मायड़ भासा री दुरगत रो
कांई कंरू बखाण !
मनैं आपरा वचन दियोड़ा
सदा रवै है चीत,
मनैं भरोसो आप पाळस्यो
रजपूजां री रीत,
आठ कोड़ पूतां रीं नचीता
सूता खूंटी ताण,
एक गीत ’धरती धोरां री’
गावै सो संसार,
मायड़ भासा री आ खिमता
पूगी समदां पार,
रच न सकै कोई भासा में
इस्यो फूठरो गीत,
सबद सबद चितराम अनूठा
हर ओळी संगीत,
थां स्यूं पैली हुया जका बै
म्हारा देस दिवाण,
साव भूलगी बां नै पीढी
कोनी रही पिछाण
फेर इंयं ही नहीं करैला
थां नै कोई चीत
दियां मान मायड़ नै लेस्यो
आप काळ नै जीत !