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श्री राधामाधव / छन्द 21-30 / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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साँवरि-साँवरि रूप की राशि कलीन मैं फूलन मैं मुसकावै।
मन्द बहै मलयानिल प्रानन लौं मधुगन्ध की धार बहावै।
पीर बढ़ै हिय बेधत तीर -सी कौनु कहौ मोहि धीर धरावै?
आवै छिनैक कौ साँवरो तो करि जोगु वसन्त मैं जोगु सिखावै।21।

नाहि कछू थिर है जग मैं तऊ माया के बंधन माहि फँस्यों है।
पायन बेड़ी बनी किरनै, रस की रसरीन मैं तानि कस्यो है।
काह कहौं बिलखाति हियो तिनका-तिनका मन मोहु लस्यो है।
बावरो ढूँढ़त जानै कितै इतै साँवरो तौ उर माँहि बस्यो है।22।

भात भरयो नरसी महराज को, धाय कै द्रौपदी लाज बचाई।
दामा-सुदामा की बाँह गही तब भूलि गयो अपनी ठकुराई।
मोहन मैं लस्यों मोहन पाइकै नाथ! करौं केहि भाँति बड़ाई।
आनि बसौ मन मन्दिर मैं प्रभु! प्रेम की पावन ज्योति जगाई।23।

दीनन कौ सिरमौर रच्यो मोहि काहे को नाथ! तुम्हैं कठिनाई।
भक्ति कौ भाव बनाय सको नहि तोरि सकौ मन की जड़ताई।
नाथ! अनाथ की लीजौ सबै सुधि आठहुजाम तुम्हैं गोहराई।
पातकी हौं सगरे जग ते बड़ो तारिबे मैं तबहूँ निठुराई।24।

अब जाउँ कहाँ- कहाँ ढूढन को प्रभु! कोऊ न देत पतो समझाई।
सब दृश्य-अदृश्य भये तब ते जब ते मन मोहन की छवि छाई।
दिन-रैन मैं सोवत-जागत मैं सपनैन मैं नैन रहे गरुआई।
वह साँवरी सूरति-मूरति-सी पुतरीन मैं आजु लौं देत देखाई।25।

पदकंज पखारि-पखारि कै श्याम-सलोने के भनुजा श्यामा कहाई।
पायो अखण्ड अनन्त सुज्ञान है मोह नसावनी गीता सुहाई।
बाँसुरी मैं रसघोरि भर्’यो चहुवेद कहैं रस-कीरति गाई।
श्याम सनेह को पान करैं नित सूर रहे सुरता ठुकराई।26।

नाम तिहारो सहारो रह्यो अब दीखि परैं नहि लोक सहारे।
जीवन कै , महि-अम्बर कै सचराचर कै तुम हौ रखवारे।
कौन सी चूक भई मोहि सौं चलि दूरि गये सगरे उजियारे।
देखउ तनी घनश्याम इतै हमै केतिक घेरे परे अँधियारे।27।

कारे भये दिन-रैन सबै अब तौ पलऊ न जगै उजियारो।
कारो भयो तन कारो भयो मन कारो भयो अब जीवन सारो।
कारो तिहारोउ रुपु भलो भला कारे ने कारे को काहे बिसारो।
कारे मैं कारो पर्’यो बिलखै समुहे तुमहे गहि कै कर, तारो।28।

भक्ति विरक्ति जगाइ दई मटकी ममता की गिराय कै फोरी।
काम को काम तमाम भयो गयो क्रोध जरावन कौ निज होरी।
मोहन की मुरली सुनिके मद मोह की हारि गयी बरजोरी।
छूटि गयो भव जाल विसाल सो राधिका-माधव की लखि जोरी।29।

साँवरे! आनि सँवारौ सही अब साँसन की गति भाजति मोरी।
बीति गयी बय दोषन के कर नाथ! रही अब तौ अति थोरी।
जागत बीति गयीं रतियाँ अँखियाँ दुखियाँ छवि जोहती तोरी।
तोरि न दीजौ मनोहर श्याम जू! कोमल-सी अति नेह की डोरी।30।