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श्री राधामाधव / छन्द 61-70 / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

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पद पंकज कै रज चन्दन सौं अधमाधमधन्य करी।
तपौं केतिक औरु अरे मनमोहन! जौ मिलै कुन्दन कान्ति खरी।
दुरि जाइ कै द्वारिकाधीश भये उरी हरि! द्वारिका सूनी परी।
अब तौ घनश्याम जू! आनिघिरौ विरहानल माहि हौं जात जरी।61।

जोहत बाट कौ नैकु थकै नहि नैनन मैं बदरा घिरि छायो।
टेरति टेरति टेर गयी भयी देर न आजु लौं मोहन आयो।
काम सौ काम रह्यो न हमैं अब श्याम सौं काम जगो मन भायो।
पायो न जो कछू कोटिक देवन सो हम मोहन नाम मैं पायो।62।

लोभु छुड़ाइ दियो, दियो बारि दया, कमाल कियो मन मोहन!
मोह बिदारि कै जीवन तै हमरो मन मोहि लियो मन मोहन!
छाँटि दियो जगजाल सबैं मन कौ बिसराम दियो मन मोहन!
प्रेम के सावन मैं बनि मोर है नाचति मेरो हियो मन मोहन!।63।

बाँसुरी मैं भरि राग हर्’यो हिय आगि लगाइ गयो मन मैं।
देखौं जिते तित आप दिखौ रवि, चन्द, अकास मैं तारन मैं।
श्याम कबौं उमगौ उर मैं उमगौ कबहूँ मम प्रानन मैं।
कानन मैं रह्यो आजु लौं गूँजति गूँजौ सदा अब कानन मैं।64।

ध्यान कियो हरि कौ ध्रुव ने ध्रुव भक्ति मिली औ मिली प्रभुताई।
मीरा भज्यो नटनागर कौं करि प्रेम अलौकिक प्रीति जगाई।
राम कौं नाम लियो तुलसी तुलसी ने अपूरब कीरति पाई।
पैहै कहा मन! या जग मैं अब ऐसे गुपालहिं कौं बिसराई।65।

श्यामहि श्याम रटै रसना, बसना अब कोई चलै सखि! मेरो।
आवै जबै सुधि राधिकारानी की पाथर-मोह गलै सखि! मेरो।
देखेउँ नही छवि कौ तब तेई कहा उर कंज खिलै सखि! मेरो।
दोऊ कहै मन-प्रान यहै, अबाँवरो आनि मिलै सखि! मेरो।66।

चक्र उठावत हौ कबहूँ, कबहूँ हौ रहे धनु-बान उठाई।
हाथ त्रिसूल लै सूल हर्’यो कबहूँ सुचि वेद-पुरान बनाई।
छत्र धर्’यो कबहूँ गिरि कौ कबहूँ बलि द्वार पै मागत आई।
काह कहौं अब आपै कहौ रघुराई कहौं कि कहौं यदुराई।67।

श्यामहि नाम बड़ो सब नामन्ह, श्यामहि श्याम जपैं त्रिपुरारी।
श्याम जपैं नित नारद गाइकै श्याम जपैं हरि दै करतारी।
श्याम जपैं चतुरानन झूमि कै सारद श्याम जपैं उरधारी।
श्याम जपैं नित चारिहु बेद सु-ब्रहम कौ नेति बिचार बिसारी।68।

भोग न भोगि सक्यों जग मैं मोहि भोगन धाइ कै भोगि लियो है।
काल बितायो कछूक नही सखि! कालहि मोहि बिताइ दियो है।
आस न हारी हरीयै रही हरि अंगहि-अंग सुखाइ कियो है।
मूढ़ रह्यो न जग्यों कबहूँ रस मोहन प्रेम कौ नाहि पियो है।69।

गोकुल मैं रहैं गोकुलचन्द गोवर्धन मैं गिरिधारी रहैं।
श्याम रहैं जमुनातट चारु कदम्बन पै बनवारी रहैं।
ग्वालन मैं रहैं माखन चोर औ गोपिन रास-बिहारी रहैं।
बाँके रहैं इन नैनन मैं हिय माँहि हमारे बिहारी रहैं।70।