भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

श्री सदगुरू छेकै सुख के सागर / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

श्री सदगुरू छेकै सुख के सागर
करोॅ हमरोॅ उपकार परभु
हमरोॅ जेसनों परानी
पैलकै चरणों में आधार परभु।

जनम-जनम सेॅ हमरा मन में
अज्ञान तम तेॅ भरपूर छेलै
गियान के जोति दै केॅ तोहंे
दूर करल्हेॅ अंधकार परभु।

जीवन नैया भवसागरोॅ में
किनारा नजर नै आवै छै
तोंही बचैल्हेॅ जीवन नैय्या
सुनी केॅ हमरोॅ पुकार परभु।

माया के अटूट जाल सें
तोंही तेॅ हमरा उबारनें छोॅ
सौंसे संसार यहेॅ कहै छै
तोंही छोॅ तारणहार परभु।

दीन भगत के सिरोॅ पर सदगुरू
दया के हाथ सदा रखियोॅ
तोंही सच्चा हितैषी जगत में
तोंही छोॅ गमख्वार परभु।