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सँपेरा और भीड़ / विश्वनाथप्रसाद तिवारी
Kavita Kosh से
साँप निकलता है पिटारी से धीरे-धीरे
नेवले को देखते ही चौकन्ना हो जाता है
भय और क्रोध से काँपता नेवला
साँप पर झपटता है
साँप तेज़ी से फन मारते हुए
नेवले को कमर से लपेट लेता है
नेवला छटपटाता है
और साँप के मस्तक पर दाँत गड़ा देता है
दोनों एक दूसरे से गुँथे
देर तक जूझते-छटपटाते हैं
सँपेरा अपनी भाषा में बोलता रहता है
फुटपाथ की भीड़ तालियाँ बजाकर हँसती हैं
और हँसती रहती है।