संकट मोचन / नील कमल
उड़ती चील के नाम
माँ कहती है संदेशा
चील जिसे ले जाएगी
प्रभु श्रीराम तक
माँ चाहती है कि संदेशा
श्रीराम तक पहुँचे
इसलिए चील से कहती है
कि वह पुत्र की जीवन-कामना से
निर्जल-उपवास थी आज
पर चील क्यों जाएगी
चील क्यों कहेगी यह सब
प्रभु श्रीराम से
चील तो चील है
माँ नहीं सोचती
किसी दूसरी पवित्र साँझ में
वह चलनी से निहारती
चाँद से कहती है - सुनो चाँद !
पति का जीवन रहे सलामत
वह एक और उपवास करती है
चाँद चुप रहता है
कहता भी भला क्या
ख़ुद पास उसके जीवन कहाँ
किसी गुरूवार को
माँ रखती है एक और उपवास
और चाहती है परिवार की शांति
किसी शुक्रवार को
प्रसन्न करती है देवी संतोषी को
अपने लिए नहीं, अपनों के लिए
माँ नहीं जानती
सारे देवताओं को प्रसन्न रखना
सिर्फ़ उसके ज़िम्मे क्यों है
वह तो संकट मोचन की भूमिका में
वैसे ही इस्तेमाल होती है
जैसे राम-रथ में प्रभु श्रीराम ।