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संकल्प / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

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सच्चे तेॅ लिखलॅ छॅ तोंय हमरॅ मीत
कि हम्में जे लिखै छियै
दोसरा चिट्ठी में ओकरा भूली जाय छियै

की कहियौं पिया?
चिट्ठी लिखै बेरियाँ
हम्में अपना में रहियै तबेॅ तेॅ!

प्रेम में बहस आरो तर्क के शक्ति हेराय जाय छै
मिलै में, खुली केॅ बतियाबै में
एक दोसरा के समर्पण में
जे पारिवारिक बाधा
भैया, बाबू आरो माय रॅ डॅर
दीवार बनी केॅ खाड़ॅ होय जाय छै
ऊ कोनो भय, संशय आरो बाधा
चिट्ठी लिखै बखती नै रहै छै

रात भी आपनॅ होय छै
मनभी आपनॅ होय छै
शब्द भी आपनॅ होय छै
आरो ई अक्षर
तोहीं कहलेॅ छेलौ
कि अक्षर ब्रह्म होय छै
जेकरा सें निकलै छै पिया
प्रेम जल के अमृत धार
कलकल करनें
धूम मचैनें

बाधा-बन्धन सें लड़ली
प्रीतम सें मिलै लेॅ इतरैली
पहाड़ॅ केॅ तोड़नें
रास्ता बनैनें
पिया, ई बात मानॅ कि प्रेम बच्चा नांकी
उच्छृंखल होय छै
जें कखन भी तोड़ी दियेॅ पारै छै किनारा केॅ

तोंय बार-बार कहै छौ
”तोंय आबै नै छॅ
तोंय मिलै नै छॅ
कहिया ऐभा, कहिया ऐभा“
कहॅ पिया आबी जैहियौं
माय-बाप छोड़ी केॅ
घर-द्वार छोड़ी केॅ
गोड़ॅ में घुंघरू बान्ही केॅ
मीरा नांकी नाचलो-नाचली।

हमरॅ संकल्प छै
मीरा नांकी बनना छै
तोरॅ प्यार में विष फेना छै
साँपॅ सें डंसवाना छै
आरो आपनॅ नाम हँसाना छै।
हम्में तोरा यही जनमॅ में

पाबी लै लेॅ चाहै छियौं हमरॅ मीत!
हमरॅ मनें कहै छै
कि हम्में-तोंय जरूर मिलबै
जनम-जनम रॅ पियासलॅ आत्मा केॅ
प्रतीक्षा तेॅ करैये लेॅ पड़ै छै।

ई नजर भर दूर-दूर तलक फैललॅ
अगहनी कैतका धान
लाल-पीरॅ उजरॅ दग-दग साड़ी में सजली
लपकी-दुलारी कनियाय नांकी माथॅ नबली
हौले-हौले झूमी-झूमी केॅ
एक दोसरा सें सट्टी-सट्टी केॅ
कानॅ में की फुसफुसाबै छै?
लागै छै पिया जेना हमरे बात करतॅे रहेॅ

खोता में बैठली सोनचिरैया
कैन्हेॅ रहि-रहि चिचियाबै छै?
देखॅ प्रीतम!
अगहन नें आपनॅ पोर-पोर में
भरी केॅ लानलेॅ छै
खाली अभिसारॅ के संकेत
समर्पण के सन्देश
देहॅ केॅ कनकनाय दै वाला ठहार

की कहियौं प्राण!
अगहन आपने काँपी रहलॅ छैठारॅ सें
वै भला हमरॅ छहारम की करतै।

पिया! आय अगहनॅ के पूर्णिमा छेकै
साँझ होथैं अगरी से लैकेॅ छपरो तांय
पसरी गेलै इन्जोरिया
जेनां कोय सुन्दर जुआन छौड़ी
अपना सहारा वास्तें मचान खोजतेॅ निराश होय केॅ
जहाँ-तहाँ लेटतेॅ फुरेॅ।

आय तोंय जरूर ऐभा
कैन्हेॅ कि सीती से घोलॅ अगहन के पूरा चान्द
तोरा देखै में बड्डी अच्छा लागै छेलौं
पैन्हैं से आबी केॅ रहै छेलौ तोंय
आरो हमरा पहुँचतै कहै छेलौ
कि आय उगलॅ छै देखॅ दू-दू चान
दोनों निर्मल, दोनों सुन्दर, दोनों हमरॅ प्राण।

आय तोरॅ वहेॅ शब्द-गन्ध सें मतैली
एक दाफी फेरू
ई सोची केॅ कि तोंय आय जरूर ऐभा
हम्में अगहन-पूसॅ के ई भीषण कनकन्नॅ ठहारॅ में भी
जबेॅ कि विषविषाबै छै गोड़
हॅ हॅ पछिरूा बहै छै
लागै छै जाड़ हड्डी में ढूकी जैतै
हम्में निकली गेलै छियै अपना घरॅ सेॅ
पूरे-पूरी सपरी केॅ
कि आय तोरा मिलला पर घुरना नै छै
-तोहरॅ साथैं जाना छै

पिया! आय इन्जोरिया भी कतना निष्कंटक होय गेलॅ छै।
जाड़ें हपकी नै लीयेॅ
सभ्भे घुसयैलॅ छै अपना-अपना घरॅ में
सब केॅ जाड़ॅ के डर छै, जानॅ के फिकर छै
अच्छे छै।
कि हमरे निष्कंटक डगर छै

नद्दी पार करी केॅ बहियारे-बहियार
खेतॅ के आरी-आरी झटकली बेसुध
हम्में पहुँची गेलॅ छियै वही पीपरॅ गाछी ठियाँ
जहाँ प्रत्येक पूर्णिमा के रातीं तांय हमरा सें मिलै छेलौ

की कहियौं पिया?
सीती से पनियैलॅ आरी पर सेॅ
कत्तेॅ दाफी ससरी केॅ गिरी गेलियै हम्में खेतॅ में
चोटो भी लागलै
मतुर सच कहै छियौं हमरॅ प्रीत!
आह तक नै करलियै!

आबॅ देखॅ नी प्राण!
आरी पर गिरलॅ छै दूनू तरफॅ सें वह रं गदरैलॅ घान
जेनां कोय छौड़ी जुआन
नीफिकर, मतैली, झुकलॅ रहेॅ अपना प्रीतम रॅ कंधा पर।

कत्तेॅ दिक्कत सहै लेॅ पड़लॅ छै हमरा
यै गिरलॅ-झुकलॅ धानॅ पर चलतेॅ
सीती सें तीतलॅ साड़ी
रहि-रहि धानॅ में लतफनाय जाय छेलै गोड़
पिया! ई प्रेम भी कत्तेॅ आन्हरॅ होय छै
जाड़ो केॅ जबेॅ लागै जाड़
हेकरा नै तेॅ जाड़-बतास लागै छै
नै तेॅ भूत-प्रेतॅ के डॅर
नै तेॅ गाँव-टोला के लाज

पिया!
ई पीपरॅ के गाछ
सौंसे बहियारॅ में असकल्ले
झपरलॅ भौंरा नांकी
अपना ऊपर इन्जोरिया के समेटनें
लागै छै जेनां कोय विरही शापित यक्ष रहेॅ
कानी-कानी केॅ सुनैतेॅ रहेॅ आपनॅ कथा
नै भूलै वाला प्रेमॅ के दरद
कहीं तोंही तेॅ नै छेकौ प्रीतम?

नै तोहें नै हुबेॅ पारॅ निर्मोही
कि तभिये लागलै, तोहीं ऐतेॅ रहॅ
आरो खुशी से हमरॅ डोलेॅ लागलै प्राण
आरो हेनै में हम्में चिहाय उठलियै
नै चाहतेॅ हुबेॅ भी, नै जानौं कैन्ह’
आरो दौड़ी गेलियै तीराकोनी जल्दी पहुँचेवाला रास्ता पर सेॅ
ताड़ के गाछॅ सें भरलॅ बान्हॅ पर चढ़ी केॅ

मतुर हाय, तोंय नै छेलौ
थकथकाय केॅ बैठी गेलियै हम्में वहीं पर चुकूमुकू
घुटना में आपनॅ मूँ छिपाय केॅ
कतना देर तांय निराश हम्में कानतेॅ रहलियै
वहेॅ रं बैठली।

पिया, ई वहेॅ पीपरॅ के गाछ छेकै
हों, ई वहेॅ पीपरॅ के गाछ छेकै
जेकरा नीचें तोंय हमरा
आपनॅ बगलॅ में बैठाय केॅ कहनें छेलौ
कि तोरॅ ई ठोर मूंगौ सें जादा लाल छौं
ऐकरा तोंय कहियो बनाबटी चीजॅ सें नै रंगैयॅ
प्रीतम! आय हमरॅ वहेॅ ठोर
देखौ नी कि चिन्ता आरो भय से कतना कारॅ होय गेलॅ छै।

सौनॅ से लैकेॅ अगहन तांय हम्में
ई आसॅ में यै ठियां पाँचो सौ दाफी ऐलियै
कि तोंय बीतलॅ बात भूली केॅ
ऐभा, ऐभा, जरूर ऐभा
आरो हमरा जेन्हॅ लागै छै कि आबेॅ तोय नै ऐभौ
आबेॅ हम्मू कथी नेॅ ऐबॅ यै ठियाँ
आबेॅ ई रास्ता भी करैतॅ रं डसै छै
तोंय छेलौ तेॅ सब आपने छेलै
यही पीपर गीत सुनाबै छेलै
आय ई कत्तेॅ झबरलॅ जटा वाला औघड़ लागै छै।

सौंसे बहियारॅ में पैसलॅ छै उदासी
आरो रास्ता वहेॅ रं ऐंठी गेलॅ छै
जेनां कोय बड़का अजगर साँप।
पिया!
क्षण भर में तै हुवेॅ वाला ई पाव भर रास्ता
हमरा वास्तें बढ़ी केॅ आय हजारों कोस के होय गेलॅ छै
एत्ते दूर केनां जैबै हम्में?
आँखी में अन्हार घूमी रैल्ह छै
माथा में आबी गेलॅ छै चक्कर
भुकभुक इन्जोरियौ में नं सूझेॅ लागलॅ छे हमरा
मनॅ में जे बहलॅ छेलै सपना के एक नद्दी
ऊ आय पूरे-पूरी सुक्खी गेलै।

पिया, घॅर तेॅ आखिर जइये लेॅ पड़तै
यही पीपरॅ के फेंड़ी सें सट्टी केॅ
तोंय खाड़ॅ रहै छेलौ
आय यै पीपरॅ केॅ हाथ जोड़ी केॅ
हम्में प्रणाम करै छियै
उठाय छियौं हम्में
अपना हाथॅ में वै ठियां के धूल
जैं ठियां तोरॅ गोड़ बराबर पड़ छेलौं

वहेॅ धूल हम्में आपनॅ कपारॅ
आरो सीती में लगैनें
पगलाही नांकी वही रं
घुरी केॅ चल्ली जाय रहलो छियौं
जेनां विहुला-विषहरी रॅ भगत
बदहवास अरदास बनी केॅ जाय छे
हम्में अपना केॅ ई सराप देनें
कि आजू सें जेना पी-पी डाकी
पपीहा कानै बारहो मास रे
होनै केॅ हम्मू रटथैं रहौं जनम-जनम तांय
खाली तोरॅ नाम
जब तक तोहें मिली नं जा।

तोहें नै आबॅ
कि काहीं रहॅ तोंय
हम्में तेॅ तोरे छेकियौं
आरो रहवे करभौं तोरे
जेनां गाछी से छाल छुटवां नै छुटे छै
सच्चे वहेॅ रं
एक दाफी जेकरा मनॅ सें बरलियै
एक दफी जेकरॅ होय गेलियै
मरन तांय ओकरे बनी केॅ रहना छै
तोरे मजबूत बाँही रॅ बन्धन में
दम टूटतै हमरॅ
बस यहेॅ संकल्प छै
तोहरे जांघी पर मुंड़ी राखी केॅ
तोरे आँखी सें आँख मिलैतेॅ
तोरे सुन्नर मुँह केॅ निहारतेॅ
मरौं हम्में
बस अतनै टा अरमान छै।

प्रीतम!
अब तांय जबेॅ जबेॅ भी
सपना देखलेॅ छी
एक्के साथ मरै के, एक्के साथ जियै के
एक्के साथ जलै के
सारा सजतै जहिया सजना तोरे ही बगलॅ में
चिट्ठी में आबेॅ नै लिखभौं कभियो
प्राणघात के बात
तोरे लेलो जिन्दा रहबै
जेनां होतै काटी लेबै
दुक्खॅ के दिन-रात।

पिया देखॅ तेॅ
चन्द्रमा में ऊ कारॅ नीकी दाग कोन चीजॅ के छेकै
लागै छै कोय घुटना में मूँ दाबी केॅ चुकूमुकू बैठलॅ रहेॅ
पिया ऊ आरो कोय नै
गाछी तरॅ में बैठली
चिन्ता में डुबली
तोरॅ साँवरी छेकौं
जनम-जनम सें प्रतीक्षा में लीन, उदास, गुमसुम
-तोरा भूलै में असमर्थ।
पिया, हम्में तोरा भूलेॅ भी नै पारभौं
जे प्रेम के भूली जाय ऊ आदमी नै छेकै
तोंय यहू कहेॅ पारेॅ छॅ
कि प्रेम में जों अतनै पीड़ा आरो जलन छै
तेॅ आदमी केन्हेॅ दिलॅ केॅ लगाय छै
-कैन्हेॅ ओकरा जराय छै
की कहियौं प्रीतम
यै जलन, यै तड़प में भी एक ऐन्हॅ आनन्द छै
कि एकरा चाही केॅ भी नै छोड़ेॅ पारै छै कोय।