भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संकल्प / हेमा पाण्डेय
Kavita Kosh से
बन्द पलकों के पीछे
चमकता उम्मीद
का जुगनू।
एक अलसाये
ख्वाब की अंगड़ाई.
जागती आँखों से बुने
इसी सपने के हाथ पैर।
हौसले की आगमें
तपा संकल्प का सोना
और मिल गई मंजिल।
कोई कोमल विचार
कही किसी मोड़
पर उगा एक इरादा।
सोच समझ कर
की गई मेहनत
हर मुश्किल छटती है तब।
निगाह के येन सामने
खिल उठता है
कामयाबी का सबेरा।
दृढ़ इच्छा शक्ति
लग्न सकारात्मकता
और सच्चाई की ताकत
इनसे मिलकर कोई
संकल्प, आत्मा में
अखुआता है।
मन मस्तिक्स में
परवान चढ़ता है।
स्वप्न शहर से चलकर
यथार्त धरा पर।
सवार होकर
बदल देता है
जिंदगी के सब नक्स॥