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संक्रमण / रामनरेश पाठक
Kavita Kosh से
स्वर एकांत से खेलते हैं
शब्दों का संगीत
अंतरिक्ष बनता है
मुख अतलांत से फूटते हैं
रेखाओं का नृत्य
परिवेश हो जाता है
धूलि वनांत से उठती है
हवा का वाद्य
ऋतु बनता है
श्री कल्पांत से उमड़ती है
निर्झर का चित्र
मन होता जाता है
सधि वाचांत से कढती है
लहरों का स्थापत्य या काव्य
अस्तित्व बन जाता है
देश स्थापत्य है
वास्तु है
मूर्ति है