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संक्रमित व्यक्तित्व / शिवबहादुर सिंह भदौरिया

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और
कौन है?
मेरे प्रतिबिम्ब और
मैं।

शिखरों
की तलाश में
सीढ़ी-सीढ़ी चढ़ती परछाइयाँ,
सान्ध्य-स्वर्ण-गोलक-सी
डूबती दशाब्दियाँ,
दुहरे-तिहरे होकर
उभरते अँधेरे
सब इर्द-गिर्द मेरे;
टूटे हुए दर्पण की
बर्छीली नोकों पर
बिछा हुआ व्यक्तित्व,
एक महाजन की आँख से
दूसरे महाजन की आँख तक
फेंका गया
ऋणग्रस्त-सा अस्तित्व,
विश्राम से
थकन तक
दीवारें खड़ी करते हुए हाथ,
रचने तक तुष्ट
रचकर असन्तुष्ट-
पछताते हुए माथ,
व्यक्ति से निकलकर
भागते हुए....कई-कई व्यक्ति
छायाओं की देह पर-
खिले हुए फूलों को बटोरती हुई
आँखें
और कौन हैं
मेरे प्रतिबिम्ब
और
मैं।