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संख पानी ढारबा धिया परैते जल / अंगिका लोकगीत

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कन्यादान के बाद पिताको चिंतित देखकर बेटी कहती है- ‘तुम्हें शंखपाणि की विधि सम्पन्न करते समय तो कुछ खयाल रहा नहीं। अब तो मैं तुम्हारे कुल से अपने पति के कुल में चली गई। अब मेरे लिए अफसोस करने या चिंतित होने की आवश्यकता ही क्या है?’
कन्यादान के समय संकल्प का जल शंख में रखकर दुलहा के हाथ पर गिराया जाता है, इस संकल्पित जल को ‘संख-पानी’ कहते हैं। यह जल दान करने वाले और कन्या के सहयोग से गिराया जाता है।

संख पानी<ref>शंख-पाणि; कन्यादान के समय की एक विधि</ref>ढारबा<ref>ढालने के समय; ढालिएगा</ref> धिया परैते<ref>डालेगी</ref> जल, तखनै<ref>उस समय</ref> न रहलो गेयान जी बाबा।
लोढिया खसलो<ref>गिर गया</ref> बनारस हो बाबा, सिलौटिया खसलो कुरखेत॥1॥
बाबा कुल सेॅ सामी कुल गेली, तखनै न रहलो गेयान जी बाबा।
संख पानी ढारला धिया परैते जल, तखनै न रहलो गेयान जी बाबा॥2॥

शब्दार्थ
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