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संगतकार को इशारा / गुल मकई / हेमन्त देवलेकर

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( संगीत सभा में एक अनुभूति )
सुनो,
भाई तुम मेरे गाड़ी के ड्रायवर थोडे ही हो
तुम्हारी भी अपनी गाड़ी है

तुमने अच्छी संगत दी
कब तक तुमको बांध कर रखूँ
जाओ थोड़ा घूम-फिर कर आओ
इसी ‘ताल’ के घने जंगल में
पहाड़, घाटी, झील, झरने
नदी, पशु-पक्षी कितना कुछ है
देखने – घूमने को
मौसम भी बड़ा सुहाना है
याद रखना शाम को
मतलब ‘सम’ पर हम फिर मिलेंगे
मैं तब तक इसी लय पर
इंतज़ार करूंगा तुम्हारा

जाओ भाई मौज करो
तुम मेरे ड्रायवर थोड़े ही हो
तुम्हारी भी तो अपनी गाड़ी है