भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संगाती / भवानीप्रसाद मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नहीं
रामचरण नहीं था
न मदन था न रामस्वरूप

कोई और था
उस दिन
मेरे साथ

जिसने
सतपुड़ा के जंगलों में
भूख की शिकायत की न प्यास की

जिसने न छाँह ताकी
न पूछा कितना बाक़ी है अभी
ठहरने का ठिकाना और