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संघर्ष / अभियान / महेन्द्र भटनागर
Kavita Kosh से
क्रांति-पथ पर बढ़ रहा हूँ द्रोह की ज्वाला जगाने !
आज जीवन के सभी मैं तोड़ दूंगा लौह-बंधन,
शोषितों को आज अर्पित प्राण की प्रत्येक धड़कन
स्वत्व के संघर्ष में, मैं पीड़ितों की जीत के हित
अब चला हूँ गीत गाने !
दुःख-गिरि के दृढ़-हृदय पर आज भीषण वार करने,
चल रहा है मन, भंयकर मौत से व्यापार करने,
साथ मेरे चल रही हैं घोर तूफ़ानी हवाएँµ
राह - बाधाएँ हटाने !
विश्व नूतन वेश लेगा दीखता जो क्षुब्ध जर्जर,
दे रहा जिसमें सुनायी सिर्फ़ क्रन्दन का करुण स्वर,
हूँ सतत संघर्ष रत मैं, रक्त से डूबी धरा पर
शांति, समता, स्नेह लाने !
रचनाकाल: 1946