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संचरि चतुर चतुर गण आगरि / मैथिली लोकगीत

मैथिली लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

संचरि चतुर चतुर गण आगरि
संचरि चतुर सेयानि
सोलहो सिंगार कय चलली हे फल्लाँ समधिन
चलि भेली दड़िभंगा बजार हो लाल
टिकुली के ज्योति देखि साहेबा लोभयलकनि
लय गेलनि दरोगबा के दरबार
देहरी बैसल कानथि फल्लाँ बेटबा
मोर मइया उढ़रल जाय हो लाल
जुनि कानीय जुनि खीजीय फल्लाँ बेटबा
जुनि ढ़ारीय नयना सऽ नोर
देबउ रे बउआ तोरा लड्डू रे मिठइया
चुपहि चुप रहि जाउ हो लाल
जीवनाथ भल डहकन गाओल
बरियतियाक बहिन छकल छिनारि