संजोना फिर से पिता को / श्रीजात वन्द्योपाध्याय / अनिल जनविजय
जब पिता ने प्रस्ताव रखा था माँ के सामने
विवाह करने का
उन्होंने मना कर दिया था
और पिता ने शरण ली थी समुद्र-तट की पुरी में ।
वहाँ पीते रहे थे वे लगातार तली हुई मछली के साथ
और तब भी अपने बड़े जूड़े और बड़ी-बड़ी आँखों वाली मेरी माँ ने
कॉलेज से वापिस घर लौटते हुए
मेरे पिता की हालत देखकर कोई दुख व्यक्त नहीं किया
और न ही कहा — हाँ !
इस साल मैं भी गया था पुरी
मैंने सोचा कि पिता की उन यादों के मलबे को संजोया जाए
और वापिस लौटा जाए उन्हीं दिनों में
जब पच्चीस साल पहले माँ ने कहा था — ना !
लेकिन पुरी के स्थानीय लोगों ने बताया
कि अब ऐसा करना सम्भव नहीं है
क्योंकि पिछले तीस वर्षों में
समुद्र भी खिसक गया है बहुत पीछे
अब पुरानी यादों को संजोना असम्भव है ।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय