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संतन अयलन सम गहँकी, गुरु हाट लगवलन हे / मगही

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मगही लोकगीत   ♦   रचनाकार: अज्ञात

संतन अयलन सम<ref>अंतःकरण और मन का संयम, शम</ref>गहँकी<ref>ग्राहक</ref> गुरु हाट लगवलन हे।
भाव उठल पँचरँग के, सभे सौदागर हे।
हम बेपारी<ref>व्यापारी</ref> निरगुन नाम के, हाटे चले न हो भाइ॥1॥
सत सुकरीत<ref>सुकृति</ref> हइ पलना, सम देल गल<ref>दिया गया</ref> डंडी जी।
गेयान दसेरा<ref>तराजू का पलड़, दस सेर का वजन</ref> बान्ह के<ref>बाँधकर</ref> पूरा करके रक्ख जी।
सौदा करे संतन चललन, आगे रोकइ जमराइ<ref>यमराज</ref>॥2॥
मोजरा<ref>हिसाब में लिया या मिनहा किया हुआ</ref> माँग हइ नाम के हो, हम तो बनिजारा।
हम तो बेपारी निरगुन नाम के हो लाऊँ नाम के माला।
सतगुरु बसथिन सतलोक में हो, उनखर<ref>उनकी</ref> छबि देखहु भाइ॥3॥
देखि छबि जमवा<ref>यम</ref> कायल भेल हो, मथवा देलक नेवाय।
कहल कबीर पुकार के हो सुनहु संत समाज।
जे जे सौदा करे नाम के हो, ओहि पूँजी हो भाइ॥4॥

शब्दार्थ
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