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संतों ने साहिबान ने छोटा किया मुझे / विनय कुमार
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संतों ने साहिबान ने छोटा किया मुझे।
मलवा हुए मकान ने छोटा किया मुझे।
यह ज़ुर्म किया ज़ुर्म की मुखालफ़त न की
इस ज़ु़र्म की थकान ने छोटा किया मुझे।
कुछ क़द खरीदने के लिए जब भी गया मैं
रब की बड़ी दुकान ने छोटा किया मुझे।
सबसे बड़ी लकीरे सुख़न खींच रहा था
खुद से बड़े बयान ने छोटा किया मुझे।
कुछ अपनी तबीयत को दलदलों से था लगाव
कुछ तेरे आसमान ने छोटा किया मुझे।
छोटा हूँ सर झुका के मगर अब उठाऊंगा
अब के जो मेहरबान ने छोटा किया मुझे।