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संदेश / अंतर्यात्रा / परंतप मिश्र
Kavita Kosh से
मैंने आसमान के पन्नों पर,
शब्दों की तूलिका से,
अपने मनोभावों के रंग संजोये हैं,
जिसे कभी तुम इन्द्रधनुष कहते हो
समय के मस्तक पर सुशोभित,
हर कला-कृति की एक कहानी है,
भूत और वर्तमान की सीमा-रेखा के बीच,
सजीव-निर्जीव का मूक वार्तालाप है
झूमती हवाओं की गोद में पलती,
विचारों की खुशबू का मधुर स्पर्श,
आमंत्रित करता है सपनों के गाँव में,
बनाये-बिगाड़े हुए रेत के घरौंधों तक
जीवन के मनोहारी संगीत उत्सव में,
बजता कर्णप्रिय मधुर अनसुना गीत,
साँसों की लय पर अबाधित थिरकती
मनमोहक लहरों का आकर्षक नर्तन
हृदय की धडकनें का ताल सामंजस्य,
दे जाता है शून्य में अनन्त का बोध