भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संदेह का लाभ / अलकनंदा साने

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

यूँ तो अपराधी कई थे,
पर हमेशा और बड़ी तादाद में
चींटियाँ ही मारी गईं

वे रात के अँधेरे में चुपचाप
करते थे हमला
चींटियाँ घूमती थी
दिन के उजाले में
झुण्ड की झुण्ड बेख़ौफ़

अपराध करते हुए देखी गईं चींटियाँ
और सजा उन्हें ही मिली
बाकी निर्दोष छूट गए
संदेह का लाभ लेकर...!