भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संध्या : दो चित्र / रमेश रंजक
Kavita Kosh से
1.
पास की गोरी पहाड़ी के
समय ने
डाल दी
बेड़ी
झील, झरने का हुआ,
पानी गुलाबी
छिल गई
एड़ी ।
2.
एक नए नाटक का
दे कर प्रोग्राम
आदमक़द शीशे में
सिमट गई शाम ।