तेरा वास गगन-मंडल पर, मेरा वास भुवन में,
तू विरक्त, मैं निरत विश्व में, तू तटस्थ, मैं रण में।
तेरी-मेरी निभे कहाँ तक, ओ आकाश प्रवासी?
मैं गृहस्थ सबका दुख-भोगी, तू अलिप्त संन्यासी।
तेरा वास गगन-मंडल पर, मेरा वास भुवन में,
तू विरक्त, मैं निरत विश्व में, तू तटस्थ, मैं रण में।
तेरी-मेरी निभे कहाँ तक, ओ आकाश प्रवासी?
मैं गृहस्थ सबका दुख-भोगी, तू अलिप्त संन्यासी।