संपादक / नरेश अग्रवाल
अनगिनत लोगों के पास जाती हैं पत्रिकाएं
लेकिन सबसे अधिक खुशी होती है सम्पादक को
जैसे उनका प्रेम उडक़र सब तक पहुंचा
हर अंक होता है पिछले से ऊंचा और गहरा
और गहराई ही पानी को जिंदा रखती है
भीषण गर्मी के बाद भी।
एक बात भी छू जाए मन को कहीं लिखी हुई
वह पन्ना मस्तक से लगा लिया जाता है
और जहां हों ऐसी बातें अनगिनत
एक फूल झड़े नहीं कि दूसरी कली तब तक खिल चुकी
वे रचनाएं जो लिखी गयी सूक्ष्म हाथों से
छपकर बन जाती है प्रशंसनीय सबके आगे
प्रोत्साहन मिलता है उन्हें, और भी अच्छा करने को
और जब तक पत्रिकाएं जिन्दा हैं
अभिव्यक्तियां भी प्रस्तुत होती रहेंगी
वरन् सब कुछ खो जाने का डर है।
सम्पादक पकड़ता है अपने जाल से रचनाओं को
चुनकर पहुंचाता है सब तक सुंदर-सुंदर मोती
और वक्त कम है सबके पास
जो भी मिले उन्हें, वह श्रेष्ठ हो
वरना समय और मेहनत दोनों बेकार.
(यह कविता श्री मनोहर लाल जी गोयल को समर्पित है)