भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संभावानाओं के द्वार / ऋतु त्यागी
Kavita Kosh से
संभावनाओं के द्वार तब बंद हो जाते हैं
जब हम स्वीकार कर लेते हैं
हर वह फैसला
जो किसी के भी हित में नहीं होता
पर हम उसे
अपनी नियति की कील मान
ठोक लेतें हैं
अपनी ज़िंदगी की चौखट पर
और जीने लगते हैं
उसकी चुभन के साथ
बिना ये सोचे
कि ज़िंदा रहने से ज़्यादा जरूरी है
हर थोपे गये फैसले के प्रति
अपनी अस्वीकृति दर्ज़ कराना।