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संयुक्त परिवार / अनुभूति गुप्ता
Kavita Kosh से
ये जंग
अपनों के बीच
ले आयी
सम्बन्धों में अहं खीच।
रोप गयी
आँगन में जहरीली दूब
एकाकीपन से
घिरा घर है
जो चहचहाहट से
भरा था पहले खूब।
बेटे-बहू के
आपसी मन मुटाव में
बुजुर्ग दपंति टूटे
अपने-अपने से ही रहे रूठे।
जिस घर को
बरसों तक
स्नेह से सींचा
अब कहा-सुनी में
बच्चों तक को खींचा।
कब...
एक मामूली-सा झगड़ा
संयुक्त परिवार को तोड़ गया
जहाँ
खुशहाली हुआ करती थी
वहाँ कई रिश्ते
रोने बिलखने को पीछे छोड़ गया।