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संवादों में रहे रात भर / सुरजीत मान जलईया सिंह
Kavita Kosh से
कैसे कहता पीड़ाओं में
गुजरा हुआ अतीत सखी
तुमसे किये हुये सब वादे
ज्यों के ज्यों मन में ठहरे
घुट घुट कर रह गयी जिन्दगी
सांसों पर तेरे पहरे
कैसे कह दूं तुम्ही बताओ
तुमको मैं मन मीत सखी
कैसे कहता पीडाओं में
गुजरा हुआ अतीत सखी
संवादों में रहे रात भर
सुबह हुई तुम चले गये
दिन जितना गतिमान हुआ है
उतने ही हम छले गये
कागज की किरचों पर कैसे
लिखता कोई गीत सखी
कैसे कहता पीडाओं में
गुजरा हुआ अतीत सखी
प्यार किया फिर शर्तें रख दीं
क्या व्यापार किया तुमने
दिल की बलि वेदी पर मुझको
मार दिया है क्यों तुमने
तुमसे मैं हर मोड़ पे हारा
कैसे लिख दूँ जीत सखी