भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संवाद / विष्णुचन्द्र शर्मा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उजले फूल दुकान के
थके से लगे मुझे।
मैंने पूछा खुद से: ‘गुलाबी फूल कहीं बंद हैं तुम्हारे भीतर!’
क्या तुम्हारा किशोर खो गया है पारी में
दुकान में सजे फूल
चुपचाप सोचते हैं: रंग पर, ताज़गी पर, उमंग पर
तुम क्या खो चुके हो पारी में।