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संशय के मारे / राजा अवस्थी

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धरती क्या छोड़ें
आकाशहीन-से,
खुशियों के पल-छिन
अनुप्रासहीन-से।
पार किये रिश्तों के
जितने भी गलियारे
सारे के सारे ही
हैं संशय के मारे;
आहत निष्ठायें ले
अंतस के ही द्वारे
हम हारे के हारे
फिर आये मन मारे;
सब साबित पल-छिन
विश्वासहीन-से।

मटके—सी एक उम्र
क्या फोड़ें छलकायें
जितनी हैं सुविधायें
उतनी ही दुविधायें;
किससे कैसी अनुनय-
विनय करें रिरियायें
छोड़ें या अपनायें
ये हासिल कुण्ठायें;
बंधन के सब धागे
श्वासहीन-से।