भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

संश्यात्मा विनश्यति / कात्यायनी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रेम को लेकर संशय।
बतख के अण्डे का
आमलेट खाते समय
प्रश्न था : "प्रतिबद्ध होना
मुमकिन है आज
क्या पूरी तरह?"
"हाँ, मुमकिन है
जान लेना
अपना ख़त्म होना
बुरी तरह।"

रचनाकाल : दिसम्बर, 2000