भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
संसद और संविधान / केदारनाथ अग्रवाल
Kavita Kosh से
संसद
हो गई सर्वोपरि
संविधान हो गया संशोधित
धर्म निरपेक्ष हो गया लोकतंत्र
समाजवादी हो गया
भारत-भाग्य-विधाता,
आम आदमी हो गए अनुशासित
सिर पर लिए
संसद और संविधान
एक ही चाल और चरित्र से
अनुबंधित जीने के लिए
लघुत्तम इकाई से महत्तम इकाई होने के लिए
अंततोगत्वा
देश के लिए होम में हविष्य हो गए
रचनाकाल: ०३-०८-१९७६