संस्कार / सन्नी गुप्ता 'मदन'
मनई चलै लाग गाड़ी से
मोबाइल कै दौर आइ गै।
मरत नाय बा खाय बिना केव
सबके मुँह के कौर आइ गै।
गाँव-गाँव मा सड़क बनी बा
घरे-घरे मा गाड़ी बाटै।
बड़े-बड़े घर मा सब बइठा
पंखा एसी मा दिन काटै।
यतना सुख के बाद भी दादा-माइक आँखिम नमी आइ गै।
खूब तरक्की किहे बा मानव संस्कार मा कमी आइ गै।
विद्यालय कै फीस बढ़ी बा
लड़के पढ़त हये अंग्रेजी।
यनके भी भाषा विचार के
बिगड़ेम बाय निरन्तर तेज़ी।
पढ़त हये ये मदर फादर
माई दादा कुल हेराय गै।
बइठी हयी सोच मा दादी
राम ई कइसन दौर आय गै।
ख्वाब तो पहुँची आसमान पे पर विचार सब जमीं आइ गै।
खूब तरक्की किहे बा मानव संस्कार मा कमी आइ गै।
अब अनिहार नाय बा घर बा
अब ई दिल मा जगह लै लिहिस।
धुँवा नाय रही चूल्हा मा
धुंध मगर सब आँख कै लिहिस।
पूजा पाठ खतम बाटै कुल
सबै धर्म पै ज्ञान बघारै।
पानी पीयत हये छान कै
निज पानी कै मान उतारै।
टूट-टूट कुल ही रिश्ता मा खून-खराबा गमी आइ गै।
खूब तरक्की किहे बा मानव संस्कार मा कमी आइ गै।